कहते हैं प्रकृति खुद को स्वयं ही संतुलित करती है इस का बड़ा उदाहरण कोरोना के समय देखने को मिला , कोरोना काल पूरे विश्व के लिये एक बहुत बड़ी त्रासदी और जन हानि ले कर आया था लेकिन उसका एक दूसरा पहलू भी था कोरोना संक्रमण के भय से लोगों का बाहर निकलना तो बंद हो ही गया था अपितु सभी यांत्रिक गतिविधियां व फैक्ट्रीयों व मोटर गाड़ियों से निकलने वाला धूल धूंवा प्रदूषण भी बंद हो गया था। परिणाम यह हुआ कि सहारनपुर से भी हिमालय श्रंखला साफ दिखने लगी थी और विश्व के स्तर पर प्रदूषण काफी कम हो गया उस दौरान कल कारखानों और फैक्टरी बंद होने से गंगा सहित सभी नदियां प्रदूषण मुक्त हो गयी।प्रकृति के खुद को संतुलित करने का एक और उदाहरण केदारनाथ में फिर से देखने को मिला पिछलों कई दशकों से इस मौसम में बर्फबारी नहीं हुयी थी परन्तु आज कल केदारनाथ घाटी में भूस्खलन के चलते सभी रास्ते बंद हैं जिससे वहां मानवीय गतिविधियां ना के बराबर है केदारनाथ में कुछ तीर्थ पुरोहित श्रवाण मास में उनके द्वारा किये जाने वाले पूजन अर्चन के लिये मौजूद हैं तथा कुछ मंदिर समिति के कर्मचारी व सुरक्षा से जुड़े हुये लोग ही धाम में मौजूद हैं आवाजाही एक प्रकार से रूकी हुयी है केदारनाथ धाम में मौजूद आचार्य संतोष त्रिवेदी ने बताया बीते रात केदारनाथ में वर्षों बाद इस मौसम में बर्फबारी देखने को मिली जैसे श्रावण मास में स्वयं देवी देवता श्वेत पुष्पों से भगवान भोले नाथ का अभिषेक कर रहे हो
मानवीय गतिविधियां कम होने से *निश्चित तौर पर प्रकृति को भी अपने मूल स्वरूप में आने का मौका मिला और विगत रात्रि धाम में बर्फबारी का नजारा देखने को मिला* एक ओर दुनिया भर के पर्यावरणविद् पूरे विश्व में जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरो को ले कर चिंतित हैं वहीं दूसरी ओर केदारनाथ में भारी भरकम मशीनों से किये जा रहे निर्माण कार्य और चूनूक एम आई 17 और सूर्योदय से सूर्यास्त तक हैलीकॉप्टरो की गड़गड़ाहट व बडे बडे ट्रको व पोकलैंड मशीनों का शोर संवेदनशील ग्लेशियर को कभी भी प्रलय में बदल सकता है । केदारनाथ जैसी जगहों में ग्लेशियर की तलहटी में स्ट्रोन क्रैशर जैसी मशीनों को निर्माण में प्रयोग किया जाना चिंता का विषय है ।केदारनाथ में आज कल आवाजाही ना के बराबर है पर्यावरण पर दबाव भी लगभग शून्य हो गया है केदारनाथ में ताजा हुयी बर्फबारी आजकल मानव हस्तक्षेप में इन दिनों हुयी कमी के परिणामस्वरूप मानी जा रही है लम्बे समय से पर्यावरण व बुग्यालों के संरक्षण पर कार्य कर रहे पर्यावरण विद् ओम प्रकाश भट्ट का भी मानना है कि निश्चित तौर पर जितना प्रकृति से छोड़ छाड़ कम होगी उतना ही प्रकृति अपने मूल स्वरूप में आयेगी और जितना मानव हस्तक्षेप अधिक होगा उतना ही नुकसान जन धन हानि के रूप में देखने को मिलेगा हमें अपने आपदा के अनुभवों से केदारनाथ सहित सभी सेंचुरी एरिया व संरक्षित वन क्षेत्रो में मानव हस्तक्षेप कम से कम करने की आवश्यकता है