राज्य की जनता के हित के मुद्दों पर विधान सभा में नहीं उठती मजबूत आवाज हमने सड़क से सदन तक उठाये मुद्दे, अतिक्रमण पर विशेष सत्र बुला कर विधानसभा में उठे मजबूत आवाज : मनोज रावत
इन दिनों अतिक्रमण को ले कर चल रही कार्रवाई से प्रदेश भर में हजारों की संख्या में लोग प्रभावित हो रहे हैं वन क्षेत्रों व प्रदेश भर में स्थानीय लोगों के भूमि अधिकारों के लिये आंदोलन चला रहे केदारनाथ के विधायक मनोज रावत से जब इस पर बात की गयी तो उनका कहना था कि सरकार को इस पर विशेष विधान सभा सत्र जन हित में निर्णय लेना चाहिए
उन्होंने का अतिक्रमण का डंडा मूल निवासियों पर जैसे ही चला वैसे ही राज्य के सभी नेता चिल्लाने लगे कि , “जब मलिन बस्तियों को बचाने के लिए कानून बन सकता है तो पहाड़ से मैदानों तक पीढ़ियों से बसे लोगों के लिए क्यों नही ?”
मैने 25 जून 2019 को ही विधानसभा में ये प्रश्न उठा दिया था । उस दिन भी माननीय विधायक शुक्ला जी और कुछ अन्य ने इस बात को उठाने पर मेरा विरोध किया था। मलिन बस्तियों वाला ये अध्यादेश उसके कुछ समय पहले आया था बाद में विधानसभा में कानून बना था इसलिए मेरे ध्यान में था।
पर तब न किसी नेता ने कुछ कहा न् चर्चा की , न ये अखबार में छपा और न ही जनता ने चर्चा की । ऐसा ही 6 अक्टूबर 2018 को भी हुआ था जब विधानसभा में राज्य की जमीन बेचने वाला भू- कानून आया उस दिन भी मेरे अलावा किसी विधायक ने विरोध नही किया । न तब भी अखबार में कुछ नहीं छपा था । न जनता में कोई चर्चा हुई थी । अब मैं देखता हूँ सभी तरफ हमें चाहिए भू- कानून हो रहा है।
मेरा मलिन बस्ती में रहने वाले लोगों से कोई द्वेष नही था न मैं उसका विरोधी था । हम किसी गरीब को उजड़ते नही देख सकते । पर ये मैं कैसे बर्दाश्त करता कि केवल मूल निवासी ही उजड़ते रहें , युवा बेरोजगार हों , गरीब बेघर हों और हम चुप रहें। उस दिन मैं खूब बोला । ये भी देख कर गहराई से समझिए कि कौन माननीय विधायक और क्यों विरोध कर रहे हैं ?
पर आज उत्तराखंड में समस्या कई हैं।
1- विधानसभा में इन पर चर्चा में बहुत कम विधायक भाग लेते हैं।
2 – अखबारों में इन कानूनों पर कुछ नही छपता । इनका भविष्य में राज्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये चर्चा भी नहीं होती।
3- हम राज्य की विधानसभा में पास होने वाले कानूनों पर ध्यान नही देते ।
4- जनता को भी ये मतलब नहीं है कि , उनके विधायक जिस काम के लिए (विधानसभा में कानून बनाने और उन पर चर्चा करने ताकि जनता का जीवन आसान हो , अच्छा हो) भेजा गया है वे वह कर रहे हैं या नहीं।
जबकि देश-प्रदेश कानून से चलते हैं। जब आफत आती है तब इन कानूनों की बात सब करते हैं। तब समय निकल जाता है।
राज्य विधानसभा का मानसून सत्र है । इस समय राज्य भर में अतिक्रमण के नाम पर बिभाग सब कुछ उजाड़ने को तैयार हैं। हम अतिक्रमण के समर्थक नही हैं। परंतु राज्य के मूल निवासियों के भी अपने हक हैं इस भूमि पर उन्हें हम कैसे छोड़ सकते हैं।
मेरा प्रदेश की जनता से निवेदन है कि , अपने-अपने माननीय विधायकों से निवेदन करें कि एकमत होकर अतिक्रमण के नाम पर हो रही तबाही पर विधानसभा में चर्चा करें, लोगों को बचाने के लिए कानून लाएं या उन धाराओं को कानून से हटाएं। ये राज्य की अस्मिता का प्रश्न है हो सके तो इसके लिए विशेष सत्र बुलाएं या कुछ दिनों के लिए विधानसभा का समय बढ़ाएं।